शारदीय नवरात्र पूरे देश में भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस नौ दिवसीय पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है, और नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की आराधना का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है।
शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन: मां चंद्रघंटा की पूजा
प्रत्येक वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। इस बार 2024 में, नवरात्रि 11 अक्टूबर से शुरू हुई है, और तीसरे दिन यानी 13 अक्टूबर को मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां चंद्रघंटा के आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। मां चंद्रघंटा को स्वर की देवी भी कहा जाता है और उनका रूप असुरों और बुराइयों के नाश के लिए समर्पित है। सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा का पूजन भक्तों को साहस और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
मां चंद्रघंटा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था। देवताओं ने त्रिदेवों से सहायता मांगी। त्रिदेवों के क्रोध से उत्पन्न ऊर्जा से मां चंद्रघंटा का जन्म हुआ। भगवान शिव ने उन्हें त्रिशूल, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र और इंद्र ने घंटा प्रदान किया। इन दिव्य अस्त्रों से सुसज्जित मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार किया और देवताओं को पुनः स्वर्ग का अधिकार दिलाया। इस कथा का पाठ नवरात्रि के तीसरे दिन अवश्य करना चाहिए, इससे मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है।
व्रत और पूजा का महत्त्व
मां चंद्रघंटा की पूजा और व्रत का विशेष महत्व है। जो भक्त इस दिन पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उनके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। मां की कृपा से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति को साहस और शक्ति प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा और कथा का विशेष महत्व है। उनकी कृपा से न केवल आध्यात्मिक शक्ति मिलती है बल्कि भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि का भी संचार होता है। इस दिन उनकी कथा का पाठ करना चाहिए ताकि मां का आशीर्वाद प्राप्त हो और जीवन में सकारात्मकता का संचार हो सके।